नेचरोपेथी और डायबिटीज़
किसी भी रोग का प्राकृतिक रूप से उपचार नेचरोपैथी कहलाता है। यह उपचार का ऐसा तरीका है जिसमें रोग का उपचार प्रकाश, जल, वायु, ताप, व्यायाम, संतुलित भोजन तथा कुछ अन्य प्राकृतिक तरीकों से किया जाता है।
प्राकृतिक तरीकों यानी नेचरोपैथी में कोई दवा का इस्तेमाल नहीं किया जाता और न ही किसी प्रकार की सर्जरी का।
इसके द्वारा मुख्य रूप से डायबटीज़, सिर दर्द, सामान्य ज़ुकाम, हाइपरटेंशन, पेप्टिक अलसर तथा उम्र दराज होने के साथ ही आनी वाली तकलीफों का उपचार किया जाता है।
पोशाक ततवो तथा सन्तुलित आहार पर आधारित उपचार
डायबटीज़ के रोगियों के लिए डायटीशियन डायट यानी भोजन की सूची तय करती है।
हायड्रोथेरेपी
डायबटीज़ के उपचार का एक प्राकृतिक तरीका है जिसमें जल का प्रयोग किया जाता है। यह शरीर में होने वाली तकलीफों या विसंगतियों के उपचार का सबसे पुराना तरीका माना जाता है। जल की घुलनशीलता, उसकी सोखने की क्षमता तथा गर्म होने का गुण नैचरोपैथी में काफी लाभदायक सिद्ध होता है। अध्ययनों से पता चलता है कि नियमित हाइड्रोथैरेपी टाइप 2 डायबटीज़ मेलिटस में काफी लाभप्रद साबित होती है। इससे व्यक्ति को अच्छी नींद आती है और शराीर में ब्लड शुगर का स्तर कम होता है। यह उन लोगों के लिए भी फायदेमंद साबित होते हैं जो व्यायाम नहीं कर पाते या उनके लिए कठिन होता है। डायबटीज़ के रोगियों के लिए इसे आशा की एक नई किरण के रूप में देखा जाता है। इसे ‘‘हॉट टब थैरेपी‘‘ भी कहते हैं। हाइड्रोथैरेपी गर्म पानी से भरे टब में की जाती है। आमतौर पर इस तरह से रोग की काफी पेचीदी स्थिति में उपचार किया जाता है। मधुमेह के रोगियों को हॉटटब थैरेपी करने से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य सलाह लेनी चाहिए। इससे रोगी का ब्लड शुगर काबू में लाया जा सकता है।
हाइड्रोथैरेपी के दौरान कनवेक्शन के जरिए एनर्जी शरीर में आती भी है और जाती भी। टब में पानी की मौजूदगी से मोशन एक्सरसाइज़ करने में काफी मदद मिलती है।
डी ऑक्सीफिकेशन
इसमें व्यक्ति कम देर के लिए भूखा रख जाता है तथा नियंत्रित भोजन एवं कुछ ऐसे सप्लीमेंट दिये जाते हैं जिनकी मदद से शरीर से ज़हरीले पदार्थ से छुटकारा मिल सके।
व्यायाम
तनाव मुक्त होने के तरीकों की मदद से तनाव पर काबू करना, भोजन में शामिल खाद्यपदार्थों का सही चयन शामिल है।
मालिश
मालिश से त्वचा के साथ ही मांसपेशिय और नरम तंतुओं को भी लाभ होता है। मालिश से उतना ही लाभ मिल सकता है जितना कि व्यायाम से। इससे मधुमेह के रोगियों को काफी लाभ होता है। इससे मांस पेशियों का तनाव कम होता है और शरीर शांत होता है। विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में डायबटीज़ जैसे कई रोगों में सदियों से मालिश का सहारा लिया जाता रहा है। सही ढंग से मालिश शरीर के लिए बेहद फायदेमंद साबित होती है।
हर्बल मेडिसिन
डायबटीज़ के रोगियों के उपचार में पौधों और प्राकृतिक उत्पादों से बनी हर्बल मेडिसन का प्रयोग किया जाता है।
क्रोमोथैरेपी
क्रोमोथैरेपी से कई रोगों का उपचार किया जाता है जिसमें कई रंगों का इस्तेमाल होता है। हर रंग का अपना अलग प्रभाव होता है। यह किसी उपचार के साथ करने से विशेष लाभदायक होती है। इसमें इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाता है कि रोगी संतुलित आहार ले रहा है या नहीं। इसके अलावा इस उपचार के दौरान व्यक्ति के लिए सामान्य व्यायाम करना और तनाव मुक्त रहना भी आवश्यक है। क्रोमोथैरेपी में कई रंगों का प्रयोग किया जाता है।
मड थैरेपी (मिट्टी से उपचार)
मड थैरेपी का इस्तेमाल रोगी के शरीर से ज़हरीले तत्वों को बाहर निकालने, तंत्रिका तंत्र को शांत करने और शरीर के कई अगों को सक्रिय करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। डायबटीज़ में पूरे शरीर का मैटेबौलिक सिस्टम ड़बड़ा जाता है। शरीर का पाचन संस्थान और एन्डॉक्ट्रिन ग्रंथियां पूरी तरह से काम नहीं कर पातीं। जिसके कारण शरीर में अशुद्धियां बढती चली जाती हैं। इसलिए यह ज़रूरी होता कि शरीर की इन अशुद्धियों को दूर करने के लिए रोगी को मडबाथ यानी मिट्टी से स्नान करवाया जाए। मडबाथ लेने के कई तरीके हैं - सबसे सामान्य तरीके में गीली मिट्टी का लेप लगाया जाता है। इसमें मिट्टी ऐसी होनी चाहिए कि वह शरीर पर आसानी से पलस्तर की तरह से फैल सके। याद रहे कि सर्दियों में मिट्टी पर्याप्त गर्म हो ताकि रोगी को ठंड न लगे। एक अन्य तरीके में रोगी को एक विशेष प्रकार के टब में लिटाया जाता है और फिर उसे ठुड्डी तक साबुन के झाग की तरह मिट्टी से ढक दिया जाता है, जिसमें अल्कलाइन तत्व होते हैं। ऐसे करने से त्वचा की नीचे की परत में रक्त संचार बढता है। मड बाथ के दौरान त्वचा मिट्टी में मौजूद खनिजों को तो नहीं सोखती किंतु त्वचा के सांस लेने के कारण उसे लाभ पहुंचता है। कई बार मड बाथ में ज्वालामुखी क्षेत्र की मिट्टी का भी इस्तेमाल किया जाता है। रोगी को तौलियों या चादर में लपेट कर करीब 30 से 90 मिनट तक मिट्टी के भीतर ही रहने दिया जाता है। इसके बाद उसे बाहर निकाल कर फव्वारे से उसे धो दिया जाता है। ऐसा करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि रोगी को ठंड न लग जाए। ऐसे स्थान की मिट्टी से भी मडबाथ दिया जाता है जिस पर सीधी धूप पड़ती हो, खुले हवादार स्थान पर हो, साफ पानी हो और जिस पर कृत्रिम उर्वरकों आदि का इस्तेमाल न किया गया हो। ऐसे स्थानों से मड बाथ के लिए 50 से 60 सेटीमीटर नीचे की मिट्टी ली जाती है। इस मिट्टी में वैसे ही रेत और पानी मिलाया जाता है जैसे कि अन्य मिट्टी में मिलाया जाता है। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जहां से मिट्टी ली जानी है वहां गन्दगी आदि न हो। डायबटिक के रोगी को पेट पर मिट्टी का लेप लगाने से भी काफी लाभ होता है।
क्रोमोथैरेपी में रंगो का इस्तेमाल
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नीला: नीला रंग शांत करता है। इससे शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है। यह अनिद्रा से ग्रस्त रोगियों को तनाव मुक्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
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पीला: इससे ‘गर्म‘ ऊर्जा का संचार होता है। इससे जोश बढता है और प्रसन्नता आती है। इससे पाचन क्रिया से जुड़ी दिक्कतें दूर होती हैं और भूख खुलती है।
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लाल: इसका इस्तेमाल इसके एन्टी एनेमिक गुणों के कारण सर्वाधिक किया जाता है।
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हरा: इसका इस्तेमाल आमतौर पर रोगी की सामान्य परेशानियों को दूर करने के लिए किया जाता है।
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बैंगनी: यह रग सफेद रक्त कणों को प्रभावित करता है, खून को साफ करता है और ध्यान लगाने की क्षमता बढाने में मदद साबित होता है।
क्रोमोथैरेपिस्टों का मानना है कि शरीर में संतरी तथा पीला रंग कम होने के कारण डायबटीज़ रोग होता है। इसमें रंगीन बोतलों का प्रयोग किया जाता है। बोतलों में ताज़ा पानी भर कर उन्हें धूप में कम से कम 3 से 4 घंटे तक रखा जाता है। ऐसा करने से पानी औषधीय गुण आ जाते हैं। डायबटीज़ के उपचार में हरा और संतरी रंग का भी इस्तेमाल किया जाता है। डायबटीज़ के रोगी को अकसर सुबह खाली पेट हरी और दिन भर में कम से तीन बार संतरी या अन्य रंगों की बोतलों में भरा जल दिया जाता है।