विटिलिगो का कैसे करे उपचार :
वटिलिगो, सफेद दाग, श्वित्र, श्वेतकुष्ठ आदि अलग-अलग नामों से जाना जाता है। रंग के अनुसार दो प्रकार हो सकते हैं किलासव वरूण, स्थान के आधार पर भी 3 प्रकार हो सकते हैं।
1. सेग्मेंटल विटिलिगो - एक सेग्मेंट में होता है फिर वहीं रूक जाता है।
2. लोकलाइज्ड विटिलिगो -एक ही स्थान में होता है, फैलता नहीं है।
3. जनरलाइज्ड विटिलिगो - शरीर के किसी एक भाग में होकर सब जगह फैलाने लगते हैं।
विटिलिगो में त्वचा का कुछ हिस्सा रंगहीन या सफेद हो जाता है।
लक्षण :-
1. त्वचा का रंग फीका पड़ता या सफेद हो जाना।
2. समय से पहले सिर के बाद, दाढ़ी, भोहें, पलकें आदि के बालों का रंग उड़ जाना या सफेद हो जाना।
3. नाक व मुंह की त्वचा के ऊतकों का रंग हल्का या सफेद हो जाना।
4. नेत्र गोलक के अंदरूनी परत का रंग फीका पड़ जाना।
ये दाग कई बार छोटे से हिस्से में होकर पूरे शरीर पर फैल जाते हैं। आंखों की रोशनी भी कम हो जाती हैं। कभी-कभी स्वत: ही फैलाव रूक जाता है। कभी-कभी पूरा शरीर सफेद हो जाता है।
क्यों होता है विटिलिगो :-
- एक ऐसा विकार होना, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनासिस्टम) खुद मेलेनासाइट (रंग उत्पन्न करने वाली कोशिका) को खत्म कर देती है।
- आॅटोइम्यून डिजीज जैसे आॅटोइम्यून थायराइड या टाइप 1 डायबिटीज का प्रभाव।
- त्वचा का सनबर्न, तनाव या केमिकल्स के संपर्क में आना।
- परिवार में पहले किसी को ये बीमारी होना (आनुवांशिकता)
- आयुर्वेद के अनुसार भ्राजक पित्त, रक्त, रस, मांस, धातु व लसीका की विकृति होने से यह होता है।
विरूद्ध आहार (जैसे दूध के साथ मछली, दही, नमक आदि) का सेवन करने से एलोपाइजन बनता है जो धीरे-धीरे बढ़कर इस प्रकार के रोग उत्पन्न कर देता है। उल्टी रोकना, विप्र, गुरू आदिका उपमान भी कारण है।
क्या करें :-
- आयुर्वेद में चिकित्सा इस प्रकार कर सकते हैं।
- शोधन - वाकुची व स्नुही क्वाथ से विरेचन देकर शोधन करें।
- सैल आदि और औषध लेप - रोगी अनुसार अलग-अलग औषधि सिद्ध तेजों का लेप लगाकर धूप में बिठाया जाता है।
त्वचाशक्ति, फफोले होने पर स्टलाइज्ड निडिल में पंक्चर किया जाता है। यथाशक्ति पेय पिलाया जाता है।
खानपान -
3 दिन बाद मलायु, प्रियंगु, असन, शतपुथा, अम्बष्ठा पलाश, गुड आदि से क्वाथ निर्मित कर पिलाया जाता है। डाइट चिकित्सक की सलाह से बिना नमक की दी जाती है।
क्या ना करें :-
- विरुद्ध आहार नहीं लें।
- हेवी फूड, स्पाइसी फूड, ज्यादा खट्टा, देर से पचने वाला, उड़न की दाल, नमकीन, तलाभुना अवाइड करें।
- केमिकल्स के संपर्क में नहीं आयें।
- कमिकल्स से बने कास्पेटिक्स का प्रयोग नहीं करें।
- सूर्य की तेज धूप से संपर्क में ना रहें अथवा सनस्क्रीन लगाकर जायें।
- गुरूजन, स्वयं से बड़े, सम्माननीय का अपमान नहीं करें।
- उनको अपमानित करके दुखी नहीं करें।
आज विज्ञान भी यह मानने लगा है कि किसी को भी कुछ देने, दान करने, मदद करने, सम्मान (इज्जत देने) से गुड हार्मोन्स (सेरेटोनिन) का स्राव होता है जो शरीर व दिमाग को स्वस्थ व खुश रखता है। इस प्रकार इन सबके प्रयोग से विटिलिगो को मैनेज किया जा सकता है।
लेप -
अंकोलादिलेप, अनल्गुनादिलेप, बाकुच्यादि तेल, लेप, बल्यादि लेप, भल्लातकदिलेप, भृंगराजदिलेप, गंधकादि
लेप, गिरिकर्णिका योग, गृह धूमादिलेप, गुरजादि लेप, गुंजाफलदिलेप, मन:शिलादि लेप, मरिच्यादि लेप, पंचनिम्बादि लेप, पथ्यादिलेप, त्रिफलादि लेप, आदि विभिन्न लेपों का प्रयोग किया जाता है। बाकुची बीज योग, बामुची प्रयोग, धात्र्यादिव्याथ काकोदम्बुरादि कसाथ व खदिरादि कपाष भी बहुत उपयोगी है। इनके साथ में - बाकुच्यादि चूर्ण, काकोदम्बरादि योग, सारिवा दि वटी, पंचनिम्ब चूर्ण का प्रयोग चिकित्सक की देखरेख में करें।
कुछ धृत व तेल भी हैं जो विटिलिगो में उपयोगी हैं। जात्यादि धृत, महानीलघृत, महातिक्तघृत, पंचतिक्तधृत, सोमराजीघृत, आरग्वधादि तेल, चित्रकादि तेल, ज्योतिमती तेल, कुष्ठ कालानल तैल, कुष्ठ कालानल तेल, रिच्यादि तेल, विष तैल, मन:शिलादि तेल आदि का प्रयोग इंटर्नल या एक्सटरनल चिकित्सक की देखरेख में किया जाता है। इन औषधियों के प्रयोग पर शोध होचुके हैं और परिणाम काफी आशाजनक रहे हैं।