अत्यधिक प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का सेवन यानी हार्ट अटैक को बुलावा
कुछ लोग अकसर बिना सोचे समझे, केवल स्वाद के लिए, वो सब कुछ खाते रहते हैं, जो खाने का उनका मन करता है और तब तक अपने खानपान के बारे में कुछ भी सोचना तक नहीं चाहते हैं, जब तक डॉक्टर ही उन्हें परहेज़ करने की सलाह नहीं दे देता। ठीक इसके उलट ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो यह जानते हैं कि अधिक प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन करने से उनके शरीर में कोलेस्ट्रोल बढेगा और फिर धमनियों में जम कर रक्त के प्रवाह को बाधिक करेगा। जिसका परिणाम होगा हार्ट अटैक। आयुर्वेद में खानपान को सेहत के लिए पूरी तरह से उत्तरदायी माना जाता है। असमय खानपान या फिर अपच और फिर पेट ठीक से साफ न होने के कारण अधपचे भोजन का आंतों में सड़ना विष को जन्म देता है। यही विषाक्त पदार्थ यूरिक एसिड के रूप में गुर्दों में पहुंचकर उसके काम में बाधा पहुंचाता है। गुर्दों के ठीक प्रकार से काम न करने के कारण न केवल यूरिया बल्कि प्रोटीन तथा अन्य तत्व ठीक से छन न पाने के कारण रक्त में पहुंच जाते हैं। यही ठीक से न छना हुआ अशुद्ध रक्त हमारे हृदय में भी जाता है। यही स्थिति लगातार चलते रहने से रक्त में इनकी अधिकता हो जाती है और शरीर में सूजन आने लगती है। यानी डॉक्टर कह देता है कि शरीर में यूरिक एसिड बढ गया है। इससे निपटने के लिए डॉक्टर ऐसी दवाएं देते हैं जिससे अधिक पेशाब आती है और ये अशुद्धताएं पेशाब के ज़रिए शरीर से बाहर निकल जाती हैं। आयुर्वेद में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कैस्टर ऑयल यानी अरंड के तेल की सीमित मात्रा देने से स्थिति काबू में आ जाती है। आयुर्वेद में खानपान पर काबू रखने के साथ ही भोजन में अदरक, लहसुन, लौंग, कालीमिर्च, पीपल, तेजपत्र, सेंधा नमक, जावित्री और जयफल जैसी चीज़ों का सेवन करने तथा रात को सोने से पहले गर्म दूध में हल्दी और केसर डालकर पीने, मोटा अनाज खाने, आटा बिना छाने यानी चोकर के साथ खाने, अंकुरित अनाज खाने, फल और हरी सब्जियों का अधिक से अधिक सेवन करने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि रेशेदार फल और सब्जियां कोलेस्ट्रोल को कम करने में सहायक होते हैं। आयुर्वेद में हृदय रोगियों को मांसाहारी भोजन, तम्बाकू का सेवन या धूम्रपान, अधिक चाय या कॉफी, अधिक तली हुई या मसालेदार चीज़ें न खाने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही प्रतिदिन व्यायाम और योगाभ्यास करने की भी सलाह दी जाती है।
अलसी और लहसुन दिल की सेहत के लिए अच्छे हैं कई बीजों में प्रोटीन के साथ ही आयरन, विटामिन ई, ओमेगा फैटी एसिड होता है तो कुछ में वसा की मात्रा अधिक होती है। सूर्यमुखी के बीजों में विटामिन ई और विटामिन बी1 यानी थाइमिन, मैंगनीज़, मैग्निशियम, तांबा, सेलेनियम और ज़िंक होता है। सैच्यूरेटिड फैट की मात्रा कम होने और विटामिन ई की मात्रा अधिक होने के कारण यह दिल के रोगियों के लिए अच्छा माना जाता है। इसका सेवन अर्थराइटिस और अस्थमा के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है। अलसी और लहसुन हमारी दिल की सेहत
के लिए अच्छे माने जाते हैं क्योंकि इनमें ओमेगा-3 फैटी एसिड यानी ओमेगा 3 होता है जो हमारी धमनियों में कोलेस्ट्रोल को जमने से रोकता है। हाल ही में कई अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला गया कि अलसी के बीज के बने पदार्थ खाने से हृदय रोगों से बचाव संभव हो सकता है। अलसी का तेल या फिर अलसी को पीस कर दही, या आटे में मिला कर खाना भी बेहद लाभप्रद होता है। इसी प्रकार प्याज़ और लहसुन भी हमारे हृदय की सेहत के लिए अच्छे होते हैं। अलसी में ओमेगा 3 होता है जो अपने एन्टी इन्फ्लेमेटरी गुणों के कारण अर्थराइटिस के साथ ही माइग्रेन के रोगियों के लिए भी लाभदायक हैं।
ओमेगा 3 एसिड होने के कारण यह हमारे दिल के लिए भी गुणकारी है। इसके सेवन से ब्लड क्लॉट यानी खून का थक्का बनना, सेल मेम्बरेन में फ्लेक्सिबिलिटी बनी रहती है जिससे कोशिकाओं में पोषक तत्व आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। ये खासकर दिल के रोगियों और मधुमेह के रोगियोंके लिए हितकर हैं।पोलीअनसेचुरेटिड फैट की अधिकता के कारण ये ब्लड प्रेशर को कम रखने में मददगार हैं। इनमें मौजूद फॉलिक एसिड गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए भी अच्छा होता है। प्याज़ और लहसुन का इस्तेमाल अकसर हमारे रसोई घरों में किया जाता है। यह स्वाद तो बढाता ही है साथ ही इसमें औषधीय गुण भी भरपूर होते हैं। यानी कहें कि दादी नानी के नुस्खों में इसका खास स्थान रहता है तो अतिशयोक्ति न होगा।