आयुर्वेद में वात-पित्त-कफ का इलाज
वात -
वात ज्वर -
इसमें बुखार कभी कम व कभी ज्यादा होता है। गला व होंठ सूख जाते हैं। नींद नहीं आती। शरीर में सूखापन महसूस होता है। कब्ज तो जाता है। सिर, हृदय तथा सब अंगों में टूटन का अनुभव होता है, पेट में अफारा तथा जम्हाई का आना ये मुख्य लक्षण हैं। चिकित्सा - 1 हिंगुलेश्वर रस 125 मि.ग्राम दिन में तीन बार गर्म जल से दें या सुदर्शन वटी की दो गोलियां दिन में तीन बार गर्म पानी से दें।
लकवा -
कुपित वायु जब किसी अंग या सारे शरीर में वात नाड़ियों व स्नायुओं को सुखाकर जोड़ों को ढीला कर देती है जिससे शरीर का वह अंग अपनी चेतनता खो देता है। वह क्रियाहीन हो जाता है। चिकित्सा - नवजीवन रस 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार शहद के साथ दें या वृहत वात चिंतामणि रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार शहद से दें।
सियाटिका -जो पीड़ा कमर के नीचे के भाग से शुरू होकर जंघा, घुटने, पिण्डली तथा एड़ी तक जाती है, उसे सियाटिका कहते हैं। यह रोग प्राय एक टांग में होता है। इसमेंसुई चुभने जैसा दर्द, अकडाहट, फडकन होती है। रोगी लंगड़ाकर चलता है। सोते समय या बादल/वर्षा, खांसने, छींकने से दर्द बढ़ जाता है।
चिकित्सा - लहसुन, एरण्ड व हर सिंगार इसकी हितकर औषधि है। हर सिंगार के पत्तों का रस 30 मि.ग्राम या क्वाथ (काढ़ा) 60 मि.ग्राम एरण्ड मूल क्वाथ में मिला कर दें। या लहसुन खरी - 20 ग्राम लहसुन की लुगदी बनाकर 20 मि.लि. गाय के दूध व 240 मि.लि. जल मिलाकर पकायें। जब दूध मात्र रह जाये तो छानकर पिलायें।
जोड़ों का दर्द -
कुपित वायु जोड़ों में ठहरकर उनमें सूजन, दर्द व निष्क्रियता लाती है। इसे संधिवात या जोड़ों का दर्द कहते हैं। यह प्राय: ठण्ड से होता है। पालथी मारकर बैठा नहीं जाता। मोटे लोगों में अधिक यह रोग मिलता है।
चिकित्सा - वात गंजाकुश रस 240 मि.ग्राम दिन में दो बार दें या वृहत वात चिंतामणि 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दें। महाविष गर्भ तेल की मालिश करते रहें।
पैर की मोच -
कभी-कभी जमीन पर या अचानक गड्ढे में पैर पड़ जाने पर या अधिक चलने से पैर की एडी में सूजन एवं दर्द होने लगता है। इसे वात कटंक भी कहते हैं।
चिकित्सा - योगराज गूगल की 2-4 वटी दिन में तीन बार गर्म जल से दें या त्रिफला गुग्गल की 2-4 गोली दिन में तीन बार गर्म पानी से लें।
- पंचगुण तेल की मालिश करें। कोलादि लेप भी करें।
पित्त - पित्त ज्वर - बुखार तेज होना, दस्त लगना, नींद की कमी होना, उल्टी लगना, मुंह से कुछ-कुछ बकना, प्यास अधिक लगना, हाथों पैरों में जलन, चक्कर आना, कभी-कभी मूर्च्छित हो जाना, ये मुख्य लक्षण हैं।
चिकित्सा - प्रवाल पिष्टी 125 मि.ग्राम शहद के साथ दो बार दें या चन्द्रकला रस 125 मि.ग्राम दिन में तीन बार गर्म जल से लें।
अतिसार -
बार-बार मल त्याग करने को अतिसार या दस्त लगना कहा जाता है। यह दो तरह का होता है - आम अतिसार,पक्वातिसार।
चिकित्सा - रामबाण रस 250 मि.ग्र. शहद के साथ दिन में 2 बार दें या संजीवनी वटी 1-2 गोली दिन में दो बार पानी से दें।
अम्लपित्त (एसिडिटी) -
जिस रोग में आमाशय में बहुत अधिक अम्ल तेजाब पित्त बने। उसमें गले व हृदय प्रदेश में जल, भोजन न पचना, पेट व छाती में जलन, अफारा, पेट में गुडगुडाहट, अरूचि, खाया हुआ भोजन ऊपर की ओर आने को होता है। जी मिचलाना, खट्टी व कडवी डकार, बिना काम किये थकान, शरीर में भारीपन, अंगों का टूटना, सिर में पीड़ा, मल गांठों के रूप में गाढा या पतला हो सकता है।
चिकित्सा - सूत शेखर रस 250 मि.ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार दें या नारिकेल खण्ड 5-10 ग्राम दिन में दो बार दूध से दें।
पित्त संग्रहणी -
इसमें नीला-पीला, पतला पानी सहित दस्ता, खट्टी डकार, हृदय व कंठ में दाह, भोजन में अरूचि, प्यास अधिक लगना आदि लक्षण मिलते हैं।
चिकित्सा - जायफल, चित्रक, श्वेत चन्दन, बायविडंग, छोटी इलायची, भीम सैनी कपूर, वंशलोचन, श्वेत जीरा, सौंठ, काली मिर्च, पीपल, तगर, पत्रज व लोंग सभी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 10 ग्राम चूर्ण, 5 ग्राम शोधित भांग, 20 ग्राम मिश्री के साथ दें।
कफ -
कफ ज्वर -
हल्का कफ बुखार, अकडाहट, आलस्य, खाने की इच्छा न होना, अधिक नींद आना, जुकाम होना, खांसी, शरीर में भारीपन, ठण्ड का लगना आदि इसके लक्षण हैं। चिकित्सा - त्रिभुवन कीर्ति रस 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार गर्म जल से दें या सितोप्लादि चूर्ण 1-2 ग्राम दिन में चार बार शहद में मिलाकर दें।
कफ की बवासीर -
जिसमें मस्से मोटे हों, मंद पीड़ा हो, मस्से ऊंचे व भारी हों, प्यास लगे, पेडू में अफारा हो, खांसी, हृदय पीड़ा, अरूचि, मूत्र कृच्छ, मन्दागिन, कफ में लिपटा हुआ मल तथा सर्दी लगे, इसमें खून नहीं गिरता।
चिकित्सा - दात्मूर्णी अर्क , त्रिफला, दशमूल, चित्रक, काला निशोथ, दात्मणी 200 ग्राम.लेकर 20 लीटर पानी में 21 दिन 7 किलो गुड के साथ रखें। स्रवण यंत्र के द्वारा इसका अर्क निकालें। 10 ग्राम प्रतिदिन सेवन करें। 1 महीने में बवासीर ठीक होगी।
अपच की चिकित्सा -
लवण भास्कर चूर्ण 5 ग्राम भोजन के बाद गाय के मट्ठे के साथ सेवन करें या अग्निमुख चूर्ण प्रतिदिन 10 ग्राम चूर्ण जल के साथ लें। वैश्वानर या बड़वानल चूर्ण भी दे सकते हैं।
बहुमूत्र की चिकित्सा -
- घी के साथ कुटी पिसी मिर्च खाने से लाभ होगा।
- दो छुहारे भोजन के बाद रात में दूध पीने के साथ उबाल कर लें।
- काले तिल खायें 1 केला 5 मिनट तक चबाकर खायें।
भूख की कमी -
अदरक+नींबू का रस 5-5 तोला, नमक लाहौरी, 1 तोला, मिलाकर धूप में तीन दिन रखें। एक-एक चम्मच भोजन के बाद पी लें। इससे भूख खुलेगी।
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